By Ritika Singh
तुम्हें अच्छी तरह से पता था कि मुझे होली पर रंग में सराबोर होना बिल्कुल पसंद नहीं. शगुन के लिए केवल थोड़ा सा सूखा गुलाल लगवाता था और फिर घर में कैद. लेकिन सब जानते हुए भी तुमने पिछली होली पर मेरे साथ शरारत की. मुझे बहाने से घर के बाहर बुलाया और मेरे आते ही न जाने कहां से पूरा बाल्टी भर रंग मुझ पर फेंक दिया. मुझे रंग से तरबतर देख कर तुम खिलखिलाकर हंस रही थीं और मैं 2 सेकंड के लिए बुत बन गया था. बनता भी क्यों न.. समझ ही नहीं आया कि ये क्या हुआ? आज तक किसी ने ऐसा नहीं किया था और सच कहूं तो तुम्हारे अलावा किसी और में ऐसा करने की हिम्मत थी भी नहीं.
दो सेकंड के बाद जब संभला तो तुम पर बरस पड़ा था मैं... 'क्या बचकानी हरकत है ये? तुम्हें मालूम है न मुझे ये सब बिल्कुल पसंद नहीं. बड़ी हो गई हो लेकिन बच्चों जितनी भी अक्ल नहीं है तुम में...' न जाने क्या-क्या गुस्से में बोल गया था तुम्हें. मुझे चिल्लाता देख तुम्हारी मासूम हंसी थम गई थी, चुपचाप सुनती रही थीं तुम मुझे और मैं..मैं गुस्से में तमतमाता वापस अंदर आ गया था.
दो दिन..पूरे दो दिन तुमसे बात नहीं की थी मैंने. कितनी कोशिश की तुमने मुझसे बात करने की, मुझे मनाने की लेकिन मैंने तो जैसे तुम्हें न सुनने की ठान ली थी. बार-बार, हर बार नज़रअंदाज़ करता रहा था तुम्हें..
आज फिर होली है, वही हुड़दंग है. सब एक दूसरे को रंग लगा रहे हैं और मैं...मैं आज भी रंगों से दूर हूं. इसलिए नहीं कि मुझे रंग पसंद नहीं, बल्कि इसलिए कि आज तुम मेरे साथ, मेरे पास नहीं हो. मेरी आंखें बस तुम्हें खोज रही हैं कि कहीं से तुम फिर से अचानक से आकर मुझे रंग में सराबोर कर दो. सिर से लेकर पांव तक मुझे रंग डालो.
सच, जितना मर्ज़ी रंग डालना, चाहे जितनी तरह के रंग डालना, इस बार मुंह से एक लफ्ज़ न निकालूंगा. मैं पूरी तरह से तुम्हारे..सिर्फ तुम्हारे रंग में रंग जाना चाहता हूं. तुम्हारी उस खिलखिलाती हंसी को कानों से अपने अंदर तक महसूस करना चाहता हूं. खुद का वजूद भूलकर सिर्फ तुम्हें जीना चाहता हूं..बस एक बार आ जाओ, कहीं से भी, कैसे भी, बस एक बार....
By Ritika Singh
रंगों की कमी तो खास रंग से ही पूरी
🙌
Nice lines
शानदार
Thanks