By Akshay Sharma
बाज़ार में, रहा तू अब जो खड़ा
ये दिल निकालेंगे, खोज की है सज़ा
दिखे कोई अगर, अपना सा था जो लगा
बच बस! लेना तू, काफ़िर है वो खड़ा (तेरा)
ऐसा कर मुड़ जा साथी ज़रा, मुड़ जा साथी ज़रा
सोच न अब खरा, मुड़ जा साथी ज़रा।
बाज़ी ख़ाली सी है, कोशिश गाली सी है
वक़्त की फिरकी में सब रातें काली सी हैं....
सुकून खर्च किया
कितना ख़ुद है जिया?
अगर जीत पाया कभी...
कोई जीत पाया यहाँ?
ऐसा कर मुड़ जा साथी ज़रा, मुड़ जा साथी ज़रा
सोच न अब खरा, मुड़ जा साथी ज़रा।
"मुड़ा तो है रास्ता जो ख़ास है तेरा
न ज़ोर है, न है चुभन, ऐसा वो है सजा
अपने जो सब क़रीब हैं, अपने ही हैं वहाँ
खोज में, इश्क़ में, पंखों को दे फैला...."
ऐसा कर उड़ जा साथी ज़रा, उड़ जा साथी ज़रा
सोचना अब खरा, उड़ जा साथी ज़रा।
By Akshay Sharma
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