By Sagarika Roy
मैं किसान हूं ,
मैं भारतीय किसान हूं ।
मैं खाद्यान्न उपजाता हूं ,
दो जून सूखी रोटी खाकर,
श्रम के बिस्तर पर,
स्वेद की चादर ओढ़कर ,
सपनों की रिक्तता के साथ,
गहरी मीठी नींद सो जाता हूं ।
मैं किसान हूं,
मैं भारतीय किसान हूं।
दो जून सूखी रोटी ही ,
मेरा आहार है,
या शायद मेरी संतुष्टि,
या फिर बन चुकी आदत ,
या फिर मेरी अंतरात्मा __
मेरे ईश्वरीय अंश की आवश्यकता
कि स्वयं आधा पेट खाकर ,
सभी को भरपेट अन्न दे सकूं ।
जब तक सोचा ना जाए ,
नया बिल लाया ना जाए ,
सही धारा बनाई ना जाए ,
दो जून सूखी रोटी से ही ,
पूर्ण संतुष्टि पाता हूं,
या फिर थक हार कर ,
चोट खाकर हजारों ,
मैं भारतीय किसान,
फंदे से झूल जाता हूं,
मैं ही अन्नदाता हूं ,
यह भूल जाता हूं,
बस फंदे से झूल जाता हूं।
By Sagarika Roy
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