By Pankaj Pahwa
ये उम्र का जाने कौन सा पड़ाव है, की गाना भूल गया हूं मैं,
जिम्मेदारियों का जाने कैसा बोझ है ये, ठीक से खाना भूल गया हूं मैं,
बेफिक्र घुमा करता था कभी साथ जिनके, उन दोस्तों के घर जाना भूल गया हूं मैं,
कभी निहारा करता था खुद को जिस आईने में घंटो, सामने उसके आना भूल गया हूं मैं,
वो कच्ची पक्की रिश्तेदारियां जिनमे गुजरा था बचपन, उनको घर बुलाना भूल गया हूं मैं,
वो भी एक दौर था जब खुद से मिला करता था खुद में जिया करता था मैं, सच कहूं तो वो ज़माना भूल गया हूं मैं,
जो कभी साधता था अपनी बातों से निशाने किसी और पे,
बात करना तो दूर जनाब वो निशाना भूल गया हूं मैं,
ये उम्र का जाने कौन सा पड़ाव है, की गाना भूल गया हूं मैं,
ये उम्र का जाने कौन सा पड़ाव है…..
By Pankaj Pahwa
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