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माँ के पास ही तो सुकून मिलता है

By Virendra Kumar


बचपन में पिता के मार का डर हो,

या हो उनके इन्कार का डर,

चाहे सुबह की चाय हो पीनी,

चाहे रात का हो डिनर,


माँ के पास ही तो सुकून मिलता है l


निवाला अपने हिस्से का भी हमें खिलती,

हमें भनक भी ना लगे और वो आधे पेट सो जाती,

खुश होती हमारी हर सफलता को देख कर,

पर खुद कितना कष्ट उठाई ये कभी नहीं बताती,


ढाल ऐसा जो किसी परिस्थिति मे ना हिलता है,

माँ के पास ही तो सुकून मिलता है l


वक्त सक्षम है हर चीज़ बदल देने को ,

पर माँ के आगे वो भी लाचार है,

प्रथम परिश्रम माँ का ही है हर विजयगाथा मे,

उसकी परवरिश के बिना तो महायोद्धा भी बेकार है.


सर पे उसके हाथ से ही मुश्किल मे भी जुनून मिलता है,

माँ के पास ही तो सुकून मिलता है l


निकल जाते हैं बहुत दूर अपने सपनों के पीछे,

दौलत और शोहरत भी हमें अपनी ओर खींचे,

हर मकाम हासिल हो भी जाये अगर जिंदगी में,

तो भी मूल्य है इन सब का माँ के प्यार के नीचे,


उसी से ही संसार का हर फूल खिलता है,

माँ के पास ही तो सुकून मिलता है l


By Virendra Kumar


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