By Chanda Arya
सुना है, बहुत तरक्की कर ली है आज विज्ञान ने
मानव हूबहू मानव से रोबोट बनाने लगा है,
वही रंग, वही रूप, वही अनुशासन भरने लगा है मशीन में,
मानव हूबहू मानव से रोबोट बनाने लगा है।
शक्ति में सौ गुना
बुद्धि में भी सौ गुना,
अब तो सुना है भाव भी भरने लगा है मानव
हूबहू मानव से रोबोट में।
एक हूक सी उठ रही हृदय में आज
एक भय, एक कंपन सा आक्रान्त हो रहा मस्तिष्क में आज,
भाव भरते - भरते रोबोट में
मानव स्वयं तो भाव शून्य न हो जायेगा,
हूबहू मानव सा रोबोट बनाते - बनाते
स्वयं हूबहू रोबोट सा तो न हो जायेगा।
क्यूँकि................
कुछ भाव शून्य चेहरे दिख जाते
बिखरे हुए इधर-उधर,
जब ढूंढने चलती मैं कुछ मानव
मानव से भाव लिये।
वो भाव शून्यता दृष्टि में ......
वो भाव रहित सूखे चेहरे
झलक ही जाते जब - तब.....
उन खोखले होते सम्बन्धों में।
वो चाबी भरे मशीन से मानव
जब भी पाती मैं आस-पास,
वो मशीन से सपाट चेहरे
भ्रमित कर जाते हृदय को अकस्मात।
हृदय हो जाता है द्रवित
पूछता हो कर अधीर
क्या वो समय आ पहुंचा है?
भाव भरते-भरते रोबोट में
मानव.....
संवेदनशीलता सींचना तो नहीं भूल गया है,
हूबहू मानव सा रोबोट बनाते-बनाते
मानव स्वयं हूबहू रोबोट तो नहीं बन गया है ।
By Chanda Arya
Comments