By Sheikh Wasim Mustafa (Sheikh Sahab 007)
गर इश्क़ है तो जाहिर करना,
तेरा खिड़की से झांकना मुझे अच्छा नहीं लगता
इतना ही मुझपे एहसान करना,
मुझे देख तेरा मुंँह फेरना मुझे अच्छा नहीं लगता ।
By Sheikh Wasim Mustafa (Sheikh Sahab 007)
By Sheikh Wasim Mustafa (Sheikh Sahab 007)
गर इश्क़ है तो जाहिर करना,
तेरा खिड़की से झांकना मुझे अच्छा नहीं लगता
इतना ही मुझपे एहसान करना,
मुझे देख तेरा मुंँह फेरना मुझे अच्छा नहीं लगता ।
By Sheikh Wasim Mustafa (Sheikh Sahab 007)
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