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मुन्तज़िर मेरी बेचैनियाँ गज़ल

By Shishir Mishra






दास्ताँ वो बीते प्यार की हर्फों में फरार हो गयी

हम बैठे थे खुमार में वो बेकरार हो गयी,


सूखे बर्बर लाज़िम जो थे मुतमईन हो के बैठे थे

और वो सहमी सिसकियाँ आबशार हो गयीं,


दिखते थे कुछ धूल से अपने ही छत पर आदमी

जब से वो मुश्ताक़ आँखें लम्बी मीनार हो गयीं,


कहीं मदारी के दरमियान बन्दर भी राजा हो गया

और कहीं अलमारियों में डिग्रीयाँ बेरोज़गार हो गयीं,


कोई फिरे दर ब दर अपने गुलाब के लिए

जाने कैसे तुम्हारी हिचकियाँ ठहरी बहार हो गयीं,


हम भी जश्न ए हिज़्र में रूठते हैं खत से तेरे

और फिर हमसे तस्वीरें तेरी दर किनार हो गयीं,


हम ने सैलाब ए ज़ीस्त में बहुतों को संभाल रखा था

और मुन्तज़िर मेरी बेचैनियाँ मुझपर ही सवार हो गयीं,


By Shishir Mishra





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Akhil Agrawal
Akhil Agrawal
Dec 15, 2022

Mishra jii💌💌 , ki " मन की बात".

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Kamini Pandey
Kamini Pandey
Nov 28, 2022

Literally I'm speechless for this growing and amazing creativity, keep it up 👏

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Shishir Mishra
Shishir Mishra
Nov 28, 2022
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Are thank you pandey ji 🙌

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Pragya Rani
Pragya Rani
Nov 28, 2022

Well✨ articulated!!❤️

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Shishir Mishra
Shishir Mishra
Nov 28, 2022
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Thank you 😁🤗❤️🙌

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Saurav Singh
Saurav Singh
Nov 27, 2022

ekdum shaandar bhai 👏👏

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Shishir Mishra
Shishir Mishra
Nov 28, 2022
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Thanks Saurav 🙌

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shashank128281
shashank128281
Nov 27, 2022

अदभुत मित्र। ऐसे ही लिखते रहे।

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Shishir Mishra
Shishir Mishra
Nov 28, 2022
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Thanks bhai 🙌❤️

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