By Shishir Mishra
दास्ताँ वो बीते प्यार की हर्फों में फरार हो गयी
हम बैठे थे खुमार में वो बेकरार हो गयी,
सूखे बर्बर लाज़िम जो थे मुतमईन हो के बैठे थे
और वो सहमी सिसकियाँ आबशार हो गयीं,
दिखते थे कुछ धूल से अपने ही छत पर आदमी
जब से वो मुश्ताक़ आँखें लम्बी मीनार हो गयीं,
कहीं मदारी के दरमियान बन्दर भी राजा हो गया
और कहीं अलमारियों में डिग्रीयाँ बेरोज़गार हो गयीं,
कोई फिरे दर ब दर अपने गुलाब के लिए
जाने कैसे तुम्हारी हिचकियाँ ठहरी बहार हो गयीं,
हम भी जश्न ए हिज़्र में रूठते हैं खत से तेरे
और फिर हमसे तस्वीरें तेरी दर किनार हो गयीं,
हम ने सैलाब ए ज़ीस्त में बहुतों को संभाल रखा था
और मुन्तज़िर मेरी बेचैनियाँ मुझपर ही सवार हो गयीं,
By Shishir Mishra
Mishra jii💌💌 , ki " मन की बात".
Literally I'm speechless for this growing and amazing creativity, keep it up 👏
Well✨ articulated!!❤️
ekdum shaandar bhai 👏👏
अदभुत मित्र। ऐसे ही लिखते रहे।