By Anju Kalra
मेरा इक अनदेखा चेहरा,
जो अब तक आँखें मूँदे था ।
धीरे-धीरे हिम्मत कर के,
अपनी आँखें खोल रहा है ॥
पहले इस को सुन कर भी मैं,
जाने क्यूँ ना सुन पाती थी ।
अब ये फिर से धीरे-धीरे,
मुझसे कुछ-कुछ बोल रहा है ॥
ये मुझसे जो भी कहता था,
झर-झर आँखों से बहता था ।
अब ये अपने शब्द रूप में,
कानों में रस घोल रहा है ॥
ये मुझमें मेरा ही बन कर,
जाने क्यूँ छिप कर बैठा था ।
पर अब तो ये सम्मुख आ कर,
मन के पर्दे खोल रहा है ॥
अब तक इसको ना देखा था,
अब तक इसको ना जाना था ।
हर पल मेरे साथ ही था पर,
जाने क्यूँ ना पहचाना था ॥
इसको सुन कर इसके मुख से,
अब जा कर ये राज़ खुला है ।
जाने कब से मेरा बन कर,
मेरे सुख-दुःख तोल रहा है ॥
By Anju Kalra
अति सुंदर विचार
Beautiful thoughts expressed so creatively
Nice one
Nice one ❤️❤️
Beautiful lines