By Sandeep Sharma
मेरी उम्मीद को किसी दिन तोड़ क्यों नहीं देते मजबूरी है अगर निभाना तो मेरा साथ छोड़ क्यों नहीं देते
कोई भी रिश्ता हो दिल से रखना अगर ये त'अल्लुक़ अगर बोझ है तो फिर इसे तोड़ क्यों नहीं देते
एक मुद्दत से बिखरा हूँ चाक पे मिटटी की तरह छूकर अपने हाथों से ये मटका जोड़ क्यों नहीं देते
वक़्त बदलेगा ज़रूर किस सोच में तुम हो वक़्त से पहले तुम ये फैसला मोड़ क्यों नहीं देते
तुम्हे चाहना ही ज़िद थी मेरी मैं जानता था सब ने मुझसे कहा भी ये ज़िद छोड़ क्यों नहीं देते
मेरे बारे में तो अब मैं भी नहीं जानता तुम मेरे सवालों के जवाब मुझे पहले से क्यों नहीं देते
अगर मंज़िल करीब ना हो और रास्ता छोटा लगे है तो मुझे रास्ते में रोक क्यों नहीं देते
अब जो बात हिसाब तक आ ही गयी है तो फिर मेरी तमाम रातों का ब्याज क्यों नहीं देते
मेरे जाने के बाद तुम बहुत रोए थे जो ये हक़ीक़त है तो इस हक़ीक़त को जुठला क्यों नहीं देते
मेरा दिल जो आज तुम्हारी यादों का मक़बरा है आ कर इस पे कोई चराग़ जला क्यों नहीं देते
हमने ख़ुद इन्हे बिगाड़ा है और शिकायत भी है कि आज कल बच्चे फोन से बहार क्यों नहीं आते
कब तक तुम्हारे साथ रहकर तन्हा फिरूं मुझे अकेला छोड़कर ख़ुद से जोड़ क्यों नहीं देते
By Sandeep Sharma
Bhai ekdum badiya
Very nice