By Anamika
जन्म से जिससे नाता रहा,
क्या उससे बताऊँ पहचान मेरी?
वो जात, धर्म, वो जन्म भूमि?
या उससे जो कमाया है मैंने,
मेरे लक्ष्य, प्रयास और उपलब्धि?
क्या खुदा का अंश समझूं खुद को,
या लोगों में परछाई देखूं अपनी?
अपनों से सिर्फ सूरत मिली,
खुद जैसे ग़ैर मिले नहीं,
अकेलेपन को अपना नहीं सकी,
संगत किसी ने की नहीं।
जो दुर्लभ था, मन में बसा वही,
हासिल को भी छोड़ना पड़ा।
शिकायतों के मौके अनगिनत हैं,
शुक्राना मेरी हिम्मत के सिवा करूं किसका?
पूछते हो क्यूं उदास फितरत मेरी!
कदम मचल रहे सरहदें मिटाने को,
मन इतनी देर कहीं टिकता ही नहीं
कि कोई जगह हो ‘घर’ कहने को।
रास्ते ये कहीं नहीं जाते जो पकड़े हैं मैंने,
कैसे चिन्हित करोगे मंज़िल मेरी?
अतीत की धूल खुद पर से साफ नहीं की,
वर्तमान को महसूस नहीं कर पा रही,
भविष्य से फिर भी उम्मीद लगी।
हकीकत को ठुकरा देती हूँ,
ख्वाबों में अलग दुनिया बनाती हूँ।
बताओ, क्या कोई मौजूदगी है मेरी?
By Anamika
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