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मेरी खलिश की तिश्नगी गज़ल

By Shishir Mishra



मै किसी ज़िंदा ए हयात को ज़िंदा कभी लगा भी नहीं,

और किसी मुर्दा ए दफ्तर को लगा मै मरा भी नहीं,


कागज़ के रंगों को उजाड़ मै खुद पर परतें चढ़ाता रहा,

रंग ए गुल तो साज़िश हुई हुआ मै हरा भी नहीं,


तीरगी से लबा लब हुई टिमटिमाती नफ़स नफ़स,

और इधर उधर में कभी चराग एक जला भी नहीं,





अपने कतल में आप ही शामिल रहा तमाशबीन,

और खूं की एक बूँद से हाथ कभी सना भी नहीं,


पूरे सफर ए खल्वत में इसी बात का रहा मलाल,

किसी ख्वाब के वास्ते हमें मलाल हुआ जरा भी नहीं,


दीवारें गवाह हैं मेरे मर्ज़ ए सुखन ए हार की,

आँखें रोज़ भरी भरी और दिल कभी भरा भी नहीं,


मेरी कलम का वलवला मुझको मार ही डालता,

मगर मरने के वास्ते मिला मुझे आसरा भी नहीं,


मेरी खलिश की तिश्नगी भी जल के राख हो गई,

और मै बैठा देखता हूँ मुद्दा मेरा खरा भी नही।


By Shishir Mishra




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Akhil Agarwal
Akhil Agarwal
Dec 15, 2022

सुंदर 💖

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Kamini Pandey
Kamini Pandey
Nov 28, 2022

Keep going 👍🏻👍🏻👏👏👏

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Shishir Mishra
Shishir Mishra
Nov 28, 2022
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Yup

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Saurav Singh
Saurav Singh
Nov 27, 2022

ek number bhai👌👌

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Shishir Mishra
Shishir Mishra
Nov 28, 2022
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Thanks bhai 🙌

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shashank128281
shashank128281
Nov 27, 2022

अति सुन्दर प्रज्ञ जी।

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Shishir Mishra
Shishir Mishra
Nov 28, 2022
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धन्यवाद भईया

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Navneet Kumar
Navneet Kumar
Nov 27, 2022

Shandaar 👏👏

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Shishir Mishra
Shishir Mishra
Nov 27, 2022
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Thank you Navneet ❤️

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