By Shishir Mishra
मै किसी ज़िंदा ए हयात को ज़िंदा कभी लगा भी नहीं,
और किसी मुर्दा ए दफ्तर को लगा मै मरा भी नहीं,
कागज़ के रंगों को उजाड़ मै खुद पर परतें चढ़ाता रहा,
रंग ए गुल तो साज़िश हुई हुआ मै हरा भी नहीं,
तीरगी से लबा लब हुई टिमटिमाती नफ़स नफ़स,
और इधर उधर में कभी चराग एक जला भी नहीं,
अपने कतल में आप ही शामिल रहा तमाशबीन,
और खूं की एक बूँद से हाथ कभी सना भी नहीं,
पूरे सफर ए खल्वत में इसी बात का रहा मलाल,
किसी ख्वाब के वास्ते हमें मलाल हुआ जरा भी नहीं,
दीवारें गवाह हैं मेरे मर्ज़ ए सुखन ए हार की,
आँखें रोज़ भरी भरी और दिल कभी भरा भी नहीं,
मेरी कलम का वलवला मुझको मार ही डालता,
मगर मरने के वास्ते मिला मुझे आसरा भी नहीं,
मेरी खलिश की तिश्नगी भी जल के राख हो गई,
और मै बैठा देखता हूँ मुद्दा मेरा खरा भी नही।
By Shishir Mishra
सुंदर 💖
Keep going 👍🏻👍🏻👏👏👏
ek number bhai👌👌
अति सुन्दर प्रज्ञ जी।
Shandaar 👏👏