By Kamlesh Sanjida
मेरे अरमानों की अर्थी,
तुमने कैसी जलाई है
मेरे जाने के बाद भी,
आजादी कैसी आई है।
समझ नहीं आता ये मुझको,
सितम मुझपे क्यों ढाई है
खुद के लालच में फसके ही,
हसी मेरी फिर उड़ाई है।
जग ज़ाहिर है ये तो सबको,
ये आजादी जो पाई है
कितनी कुर्बानी देकर फिर,
आजादी शूली चढ़ाई है।
तेरे ही इन्हीं स्वार्थों से,
आजादी कहाँ आई है
अपनों पर ही कैसी-कैसी
तूने सितम ये ढाई है।
अब मुझको समझ नहीं आता,
किसके लिए ये लड़ाई है
खुद की ये कैसी खुद्दारी,
जो वतन में आग लगाई है।
चुप बैठा हूँ मैं इसी लिए,
रूह अपनों ने दुखाई है
मैंने तो अपनी जान,
भारत माँ पे लुटाई है।
बीच में राजनीति कैसी,
तुमने ही जो अड़ाई है
मात भी तो दुनियाँ में,
इसी लिए हमने खाई है।
मेरी भी रूह भटकी-भटकी,
अब तक ही तो फिराई है
चैन कहाँ अब तक भी मेरी,
रूह को भी मिल पाई है।
कब मरा मैं या मारा गया,
खबर इतिहास में न आई है
फिर भी मैने देश की खातिर,
अपनी जान तो गवाई है
नाम नहीं, क्या मरा नहीं मैं,
देश की खिल्ली उड़ाई है।
कीमत भी अब तक कितनी,
देश ने खुद ही चुकाई है।
पल-पल में अब भारत माँ ने,
कितनी जिल्लत उठाई है
पर ये हम लोगों को कहाँ,
कभी ना समझ में आई है।
चाहत क्या है हम लोगों की,
कहाँ हमें खुद समझ आई है
तभी तो हम लोगों ने कैसी,
आत्मा माँ की दुखाई है।
बार-बार ही तरह-तरह से,
भारत माँ बंदी पाई है
तेरी ही करनी के कारण,
क्यों एक आँसू न आई है।
जरा झकझोर आत्मा खुद की,
ये कैसी उन्नति आई है
दुनियां में अभी तक हमने,
वो इज्जत अब तक न पाई है।
मेरी रूह ने तुझको कितना,
झकझोर फिर से लगाई है
भारत माँ की इज्जत खातिर,
आत्मा फिर से जगाई है ।
By Kamlesh Sanjida
शहीदों की रूह पर कविता