By Neha Mishra
तमन्नाओ के तकिऐ तले
मिरी जिन्दगी गुजरी है
जो तू छू ले मुझे तो
मै आबाद हो जाऊ ।
ये करम है या सजा
जहरे-ए-नकाब में हुऐ वो रु-ब-रु
जो नजर से नजर मिल जाऐ
तो मैं बर्बाद हो जाऊँ ।
तख्त-ए-सुल्तां अब मुझे
अज़ाब सा लगता है
किसी बेजार बस्ती का
मै चराग हो जाऊँ ।
मयकदी में गुजारा अब न होगा
न होगा छोड़ कर भी
रहमत-ए-करम हो
उसकी जुल्फ का मैं गुलाब हो जाऊँ ।
खुदी करली बहुत उनकी
हसरत इक रही दिल में
लबों से वो लगाऐ जाम तो
मैं शराब हो जाऊँ ।
By Neha Mishra
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