By Sagarika Roy
मैं और तू
मां ,मैं मुक्त हूं,
और तू बंधन में,
मैं उन्मुक्त हूं ,
और तू क्रंदन में ।
मैं अमरलोक में,
तू मृत्युलोक में।
मैं प्रकृति के कण - कण में ,
तू सृष्टि के सीमित जीवन में।
मैं अनंत यात्रा कर चुका ,
तुझे अब भी पग बढ़ाना है।
मैं परमात्मा में समा चुका ,
तुझे मुझमें ही समाना है।
मैं अमरत्व पा चुका ,
तू नश्वरता को ताक रही ।
मैं मुक्त गगन में उड़ चला ,
तू अब भी ओट से झांक रही।
तू दे मुझे एक बार आवाज ,
मैं देता हूं मधुर स्वर ।
तू मुझमें आ जा समा ,
मैं अनिरुद्ध तेरा ही ईश्वर ,
मैं अनिरुद्ध तेरा ही ईश्वर।।
By Sagarika Roy
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