By Chaitali Deepesh Sinha
यह रातें न जाने क्यों जगाती हैं,न जाने कौनसी बात मन को खाती है|
क्या यह ज़िन्दगी की भाग दौड़ है,
या जीवन में आने वाला नया मोड़ है?
क्या यह कल की फ़िक्र है या नयी सी कोई आदत है,
क्या यह लापरवाही है, या आने वाले कल की ओर शिद्दत है?
"प्रीत" खुद से सवाल करती है, रातें जाग कर,
क्या खोल पाउंगी मैं भी अपने पर (पंख)?
By Chaitali Deepesh Sinha
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