By Akshay Sharma
याद रही...
थोड़ा सा बचपन का ख़ुमार, थोड़ा है नया विचार, मैं वही
थोड़ा तब पैदल था चला, थोड़ा अब ज़ख़्मी हूँ पड़ा, मैं वही
याद, याद रही, मैं वही...
न जाने कहाँ खो गईं बातें, शुरू हुई थी यूँ ही
न जाने कैसे खो गए यार-दोस्त, मिले थे अभी
याद, याद रही, मैं वही...
हर इक मांग पे थी उनकी हाँ
बदला है अम्बर, बदली है धड़कन, वो बदले ना
ऐसा सा बचपन बीता था यहाँ
हैरान हूँ देख कैसे बदले रँगों के निशाँ
याद, याद रही, मैं वही
मैं, मैं वही, कहानी नई।
By Akshay Sharma
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