By Dr Kavita Singh
कोरोना के कारण जीवन के सफ़र में बिछड़े साथियों को एक
श्रद्धांजलि
यूँ नहीं चले जाना था
यूँ नहीं चले जाना था....
कुछ पल और ठहरना था,
कुछ और घड़ी बतलाना था।
यूँ नहीं चले जाना था....
अभी तो शुरुआत हुई,
थोड़ी सी ही बात हुई।
कुछ तुम कहते,
कुछ हम कहते।
एक अफ़साना बन जाना था....
सुख-दुःख साथ निभाना था....
यूँ नहीं चले जाना था....
कुछ मुस्कानें खिली नहीं ,
कुछ खुशियाँ मिली नहीं।
जीवन की सुरमई शामों को,
थोड़ा और सजाना था....
कुछ लम्हे ठहरकर जाना था ...
यूँ नहीं चले जाना था....
आँखों के दो पैमाने,
थोड़ा और छलक जाते।
दो घूँट तसल्ली के,
मन की प्यास बुझा जाते।
यादों से भरे ख़ज़ाने को,
थोड़ा और बढ़ाना था....
एक बार कभी तो गलती से,
मुड़के पीछे आना था....
यूँ नहीं चले जाना था....
कितने वादे तो तोड़ दिए,
रिश्ते भी पीछे छोड़ दिए।
जहाँ रहो तुम खुश रहना,
यादों में आते रहना।
यह वादा तो निभाना था....
गैर नहीं बन जाना था....
यूँ नहीं चले जाना था....
By Dr Kavita Singh
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