By Kuldeep Kumar
ये कहानी है एक टूटे हुए ठूंठ पेड़ की, जो कभी हरा भरा था। पथिक को छाया देता, कोसों दूर की थकान मिटा देता था, बस कुछ पल इसकी घनी छाया में जो बैठ जाता। ना जाने कितने पक्षियों को आसरा दिया था इस ठूंठ पेड़ ने। कितनी ही पीढियां गुजरी होंगी इसकी छाया लेते लेते। जब तक हरा था किसी से कोई भेदभाव नहीं किया, कभी भी किसी का नाम नहीं पूछा, किसी की जाती या धर्म नहीं पूछा जो भी इसके नीचे आराम करने आता। समय बीतता गया और समय के साथ ही इस विशालकाय पेड़ की हरी पत्तियां धीरे धीरे सूखती चली गईं। वक़्त गुजरता गया और ये हरा भरा पेड़ अब सूखा हुआ बेजान ठूंठ हो गया। वक़्त का खेल भी खूब है, जब तक हरियाली थी, सब आनंद से इसके नीचे बैठा करते थे, लेकिन अब कोई इसको पल भर भी रुक कर निहारना नहीं चाहता। क्योंकि अब ये बेजान हो चला है। अब ये किसी काम का ही नहीं रहा, और सीधे कहें तो अब ये किसी का भी मतलब पूरा नहीं कर सकता, बेचारा। अब तो धीरे धीरे दीमक इसे अपना घर बना कर एक दिन मिट्टी में मिला देंगी। कभी सोचा ना था कि यूँ मतलब निकल जाने पर कोई सूखते पेड़ को अनदेखा कर सकता है। काश कोई तो होता जो बिना मतलब के सिर्फ एक बार के लिए ही सही, इसका ध्यान रख पाता, बस एक पथिक। शायद थोड़ा ध्यान देने से आज ये यूँ ठूंठ ना खड़ा रहता। इसी इंतज़ार में कि कोई तो भला राहगीर जो कभी इसकी छाया में बैठा हो, इसकी सुध ले ही ले। पर इस बेचारे पेड़ को क्या पता था कि मतलब निकल जाने पर क्यों कोई पूछता है किसी को। अनजान था बेचारा। इसी इंतज़ार में सूखता चला गया, और करता भी क्या? पर भले ही वो पेड़ ठूंठ हो कर मर जाये, पर ये जरूर जान गया कि मतलब निकल जाने अपर कोई नहीं पूछता।
यही हाल इस दौर में उन लोगों का है जो अपनी संतान को अपनी छाया से सुखी रखते हैं, जीवन भर जब तक हो पाता है उन्हें कोई कष्ट नहीं आने देते लेकिन समय के साथ जब वो लोग ठूंठ होते चले जाते हैं तो उन्ही की संतान उन्हें दीमक लगने के लिए छोड़ देते हैं। ऐसा भी नहीं है कि सभी संताने अपने माँ बाप को ठूंठ होने के लिए छोड़ देती हैं, लेकिन फिर भी आज के समाज में हाल कुछ ऐसा ही है। कुछ लोग दोस्ती के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हो जाते हैं, और उनके मतलबी दोस्त किसी हरे पेड़ को पाते ही सूखते हुए ठूंठ को भूल जाते हैं। लेकिन एक बात हमेशा याद रखना कि जो आपके बुरे वक्त में आपके साथ रहा, उसे उसके बुरे वक्त में अकेला उसी के हाल पर छोड़ देना कभी भी सही नहीं होता। क्या पता जिस पेड़ की छांव में अभी आप हो, कल वो भी ठूंठ हो सकता है। फिर कहाँ जाओगे?
By Kuldeep Kumar
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