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ये वहम का जाल मैं अब तोडना चाहता हूँ

By Sandeep Sharma





ये वहम का जाल मैं अब तोडना चाहता हूँ तुम्हारी आँखों से ख़ुद को देखना चाहता हूँ

कोई ख़्वाब अब मुकम्मल कैसे होगा मैं हर पल तुम्हारे साथ जागना चाहता हूँ

ये हसरतों की फ़िल्म अभी अधूरी है मैं हर तस्वीर में तुमको देखना चाहता हूँ

एक बनावट मेरे चेहरे पर अक्सर रहती है मैं अपने अक्स में तुमको देखना चाहता हूँ

माना कि अभी बहुत दूरी है दरमियाँ मगर मैं फिर भी तुम्हे रोकना चाहता हूँ

मेरी अना अब मुझसे आगे जाती हैं तो जाये मैं वैसे भी अना छोड़ना चाहता हूँ

ये आईना जो तेरे बारे में सच बोलकर मुझे डराता है मैं इस आईने को तोडना चाहता हूँ

ये रास्ता जो जा रहा है दुनिया की तरफ मैं इसे तुम्हारी जानिब मोड़ना चाहता हूँ

नाख़ुदा मेरा कश्ती डुबाना चाहता है मैं फिर भी ये पतवार तोडना चाहता हूँ

'संदीप' जहां इंसान की कुछ ही क़द्र ना हो ऐसी दुनिया को मैं छोड़ना चाहता हूँ


By Sandeep Sharma





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