By Payal K Suman
यह शहर जो कभी मेरा था
अब मुझे मेरा नहीं लगता
सूरज, रोशनी, माधुर्य, जहां हर तरफ सवेरा था
आज मुड़कर देखा वहां अंधेरा बड़ा घनेरा था ।
जिन गलियों में मैं दौड़ी थी
जहां कि मैं बेलगाम घोड़ी थी
जिन नन्हें कदमों से कभी हवाओं को भी पकड़ा था
झुक कर देखा उन्हीं पैरों को जंजीरों ने जकड़ा था ।
बचपन में तो कब्रों से भी फूल हमने तोड़ा था
आज उपवन देखा वहां
बस कांटों का हीं बसेरा था
ये शहर जो कभी मेरा था।
By Payal K Suman
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