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रविवार

By Kavita Batra


कुछ तुझ सा हो,

कुछ मुझ सा भी हो  ।

थोड़ा सा रॉब वाला,

और थोड़ा सा खुशनुमा सा भी हो ।


पल जो मिलता नहीं कहीं, 

वो तेरे जैसा बेफिक्री सा भी हो ।

मतलब के बंधनो के इस दौर में, 

तुझसा बेमतलब ,

बिन बांधे वाला सा भी  हो ।


चाय की मुलाकात आती तो हैं,  सबके  हिस्से में, 

एक तेरे साथ की टपरी वाली चाय सा भी हो ।


सस्ता कुछ भी नहीं होगा ,

महंगा साथ सा ,

हमारे छोटे किस्सों के ,

नोक झोंक, का एक नयाब सफर सा भी हो।


रविवार, 

कुछ तेरे सफर सा  ,

कुछ मेरे सफर सा ,

और बनी हमारी दोस्ती का ,

एक नया सफर सा भी हो ।


By Kavita Batra


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