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राख से अग्नि (Raakh Se Agni)

By Deep N Rawal


राख से बना हूँ  मैं

श्रम से पला हूँ मैं

ताप सहता अनंत 

आग से है भय नहीं

घाव से भरा शरीर हूँ

अटूट सा खड़ा वही हूँ


घृणा नहीं है हार से

ना जीत से प्रेम है

कर्म करता सदा 

कर्त्तव्यनिष्ठ बलवान मैं


जीवन का है अर्थ क्या

यह जंग नहीं एक गीत है

राग से बना हूँ मैं

ताल पर चला हूँ मैं

रंगमंच के संगीत सा

मधुर कोई प्रीत हूँ


मौन हूं मैं, मन्द नहीं

ये जोश है, हठ नहीं 

जीत से दूर तो क्या

पुरुषार्थ के समीप खड़ा


अब चल पड़े जो पांव धूप में

छाव की तलाश नहीं

तप रही है रेत भी

जूतो की मुझे आस नहीं

उस रेत के कण कण से

एक सबल ढाल बन

आज की रणभूमि मे

एक प्रबल पार्थ बन


मैं ताकता उस चोटी को

महनत की एक रोटी को

मैं मानता हर शौर्य को 

चड़ने से जो ना डरा

लड़ने वह फिर चल पड़ा

पीड़ा से जो भरा

धैर्य का वो है घड़ा


सत्कर्म के मार्ग पर 

परिश्रम के स्वेद से 

मैं बुंद बुंद हो चला 

पानी सा सरल था जो

आज रक्त बन बह चला

उसी लहू के रंग सा मैं

प्रकाश की तरंग सा मैं

खुद में विलीन हो चला

संघर्ष के इस प्रलय में 

मैं राख से अग्नि हो चला

मैं राख से अग्नि हो चला


By Deep N Rawal

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