top of page

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नाम पत्र

By Kopal Batra


दिल्ली

२५/१०/२२


प्रिय बापू

सादर प्रणाम!

आप भले ही मुझे नहीं जानते होंगे , पर मैं स्वयं को आपसे भली -भांति परिचित पाती हूँ। अतीत की सुनहरी यादों की पोटली खोलती हुए मैं आपको बताना चाहती हूँ कि यह पत्र मेरे अंतर्मन में छिपे आपके प्रति भावों का स्पंदन और वंदन दोनों ही है। छुटपन में नानी द्वारा सुनाई जाने की कहानियों के प्रमुख पात्र आप ही हुआ करते थे, उनके मुख से आपके बचपन की अनेकों कथाएं सुनते हुए मैं अक्सर मंत्र-मुग्ध हो जाया करती थी। जिस नाटक ने आपको बाल्यावस्था में ही सच की राह पर चलने की सीख दी, उसी राजा हरिशचन्द्र के नाटक को बार-बार पढ़कर ये गाँठ मैंने मन में बांध ली कि सत्य की विजय अटल होती है।


बापू! अगर रूप व्यक्ति- सत्य और नाम समाज- सत्य माने गए हैं तो यह बात तय है कि आप जीते- जागते ही व्यक्ति से विचार बन चुके थे और विचार कभी मरा नही करते ….. सो प्रिय बापू, आप अमर है….. आने वाली पीढ़िया मुश्किल से विश्वास कर पाएंगी कि हाड़-मांस का बना कोई ऐसा इंसान भी कभी धरती पर हुआ था जिसने भारतवर्ष की आत्मा पर सदियों से पड़ी धूल में सार्थक फूंक मारी थी। आप अहिंसा के न केवल प्रतीक भर हैं बल्कि मापदण्ड भी हैं। ऐसे समय में जब पूरे विश्व में हिंसा का बोलबाला है, मानवता खतरे में है गरीबी, भुखमरी और कुपोषण लोगों को लील रहा है तो ऐसे में आपके विचार बरबस प्रासंगिक हो उठते हैं। सत्य और अहिंसा के प्रति आपकी दृढ़ता को देखते हुए अर्नाल्ड जे टोनीबी ने सच ही आपको पैगंबर का रूप तक कह दिया है। विश्व समुदाय इस बात से एकमत है कि आपके सुझाए रास्ते पर चलकर ही एक समृद्ध , सामर्थ्यवान ,समतामूलक और सुसंस्कृत विश्व चेतना का निर्माण संभव है।……. तो मैं बात कर रही थी अपने बचपन की। आपकी भांति मैं भी पुस्तक-प्रेमी हूँ। आपकी आत्मकथा थमाते हुए मेरी माँ ने कहा था कि यह एक महान समर-गाथा है। आपकी आत्मकथा पढ़ते-पढ़ते ही मैं जान गई कि आपकी नीयत में ही कुछ ऐसी बरकत थी कि मैं अपनी बाल- सुलभ जिज्ञासाओं के सहज उत्तर अनायास ही पाती रही ।


एक प्रसंग में आपसे साझा करना चाहूंगी। सन 1919 में आपके द्वारा प्रारंभ किया गया अखबार ‘ यंग इंडिया’ के विषय में मैंने विस्तार से जाना | इसके माध्यम से जो दमदार बात मैंने सीखी वह यह है कि अभिव्यक्ति का कोई छोटा माध्यम उस छोटे पार्सल की तरह हो सकता है जिसमें कोई बड़ा उपहार रखा हुआ हो। सच कहूँ , इसे पढ़कर मैं और मेरी सखियों ने आत्ममंथन किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हम अपने जीवन को वह आगाज़ देंगे कि पूरा संसार जानें कि आप जैसा विराट और भव्य -व्यक्तित्व भारत के बच्चे-बच्चे में बसा है। आपकी ही तरह मैं भी कुछ उसी प्रकार के प्रभावशाली संपादकीय कॉलम लिखने की मंशा रखती हूँ । माँ ने ही बताया था कि आप तकनीक के अधिक प्रशंसक नहीं थे पर अपने प्रयोगों को अवश्य वैज्ञानिक मानते थे । वो ये भी बताना नहीं भूलती कि भारतवर्ष में पहली बार लाउडस्पीकर का प्रयोग आपकी रैली में ही हुआ था, मन गर्वित हो उठा ।


अच्छा ! अब मैं आपको एक रोचक किस्सा बताती हूँ। अमेरिका के रोचेस्टर में सत्ताईस वर्षीया शिक्षिका मारिया एंजेल्स वहाँ अहिंसा के सिद्धांतों को पढ़ाती हैं । उनके कोर्स के बाद छात्रा पर किए गए एक आंकलन पर आधारित सर्वे में बताया गया कि ‘मुनरो हाईस्कूल’ से उन बालकों कि संख्या जिन्हें व्यवहार सम्बन्धी मामलों में विवाद -निपटान केंद्रों में जिन कि आवश्यकता होती थी , छियासठ (66 %) फीसदी तक की कमी आयी थी । इतना क्रन्तिकारी परिवर्तन। नया समाज गढ़ने के लिए और समाज को बेहतर बनाने के लिए आपके विचार-दर्शन को अपनाने से अच्छा और क्या होगा? हे! धरती पुत्र आपको ह्रदय से बारम्बार धन्यवाद।





आपको एक बात और बताऊँ मेरे पिछले जन्मदिवस पर माँ ने संपूर्ण गांधी - वाङ्ग्मय (सी डब्ल्यू एम जी) जो आपके विचारों का एक स्मारक दस्तावेज है, मुझे थमाया तो मैं खुशी से उछल ही पड़ी थी। मैं इसका एक खंड हर हफ्ते पढ़ने का प्रयास करती हूँ। इसे पढ़कर मैंने जाना कि आप अद्वितीय संगठन- क्षमता के स्वामी थे। माँ ने बताया कि , इस ग्रंथ को भारतीय- संसद में रखा गया है ताकि सांसद इस धरोहर- साहित्य का अनुशीलन कर पाएं । इस ग्रंथ में आपने (1884 से जब आपकी आयु चौदह वर्ष थी) , लेकर (30 जनवरी 1948 ) अपनी शहादत के समय तक अपने अमूल्य विचार व्यक्त किए हैं , संकलित किए गए हैं।


एक विशाल राष्ट्र का निर्माण करने , उसे गौरवान्वित करने, उसमें स्वाभिमान फूंकने और उसे स्वाधीनता के द्वार तक पहुंचाने में आपने जिस प्रकार के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रीय अखंडता की नींव रखी उसे रहती दुनिया तक याद किया जाता रहेगा । दक्षिण अफ्रीका के जन - आंदोलन को आपने जो दृष्टिकोण दिया वह इतिहास में एक नवीन प्रयोग था, यह इस बात का भी साक्षी है कि सत्य ,अहिंसा और प्रेम के आध्यात्मिक अस्त्र से इतना बड़ा युद्ध कभी नहीं लड़ा गया और न जीता गया है।

अहिंसा को शौर्य के शिखर का संबल मानने वाले हे महामानव ! आपके कहे गए शब्द जीवन की कठिन और असमंजसभरी परिस्थितियो में मेरा साथ देते हैं रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यूँ ही आपको ‘महात्मा’ की संज्ञा नहीं दी थी।

“... चल पड़े जिधर दो डग जग में

चल पड़े कोटि पग उसी ओर …."


बापू …आज भी समय कैसा भी हो, चाहे कोई साथ खड़ा हो या न हो, मुझे विश्वास है कि आप हर पल मेरे साथ खड़े हैं और दुनिया की कोई ताकत मुझे डिगा नहीं सकती, इसी के साथ मैं अपनी लेखनी को विराम देते हुए पुनः आपको नमस्कार करती हूँ। शेष अगले पत्र में।



आपकी प्रशंसिका

क. ख. ग


By Kopal Batra




55 views0 comments

Recent Posts

See All

"Echoes of The Inner Battle"?

By Riya Singh Inner Self: The storm has begun. Do you feel it? The world is roaring around us, calling us to rise. Today is the moment of...

The Wake-up Call

By Juee Kelkar When the silence slowly engulfed the noise as the sun grew dull in the village of Sanslow, a little girl, accompanied by...

Act

By Vidarshana Prasad You are the main act.    We are put on the stage before we know it. It's too late to realize that we've been there...

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page