By Falguni Saini
वक्त का भी कैसा अजब खेल है,
कभी एक ही पल में इतना कुछ घट रहा होता है
कि सांस लेने को भी तरस जाते हैं हम
और कभी सिर्फ सांसों की आवाज से ही खुदको जिंदा पाते हैं हम।
जो पल उस समय बड़े साधारण लगते थे,
आज उन्हीं को किस्से कहकर दोहराते हैं हम।
जिन बातों को उलझनें समझते थे,
उन्हीं को आज मासूमियत कहकर मुस्कराते हैं हम।
जो साथी उस समय परिवार लगते थे,
उन्हीं को फोन लगाने में कतराते हैं हम।
जिन दोस्तों से छोटी–छोटी बातों पर मुंह फेर लिया,
उन्हीं की बातें याद करके भर आतें हैं हम।
कुछ रह नहीं पाए , कुछ को हम न रख सके,
कुछ को हमने रखा तो कुछ को वक्त ने न रहने दिया,
मगर यकीन मानिए,
हर एक को खोने पर पछताते हैं हम।
By Falguni Saini
Mighty writing!
Awesome
Nice work
I'm loving your work!!