By Nikhil Tandon
एक नन्हा सा पौधा जो बस कुछ दिनों पहले ही इस धरती पर लगाया गया था, वह अपने आस-पास की हरियाली को देखता है। बड़े-बड़े वृक्षों को देखकर उसके मन में उत्साह उत्पन्न होता है। मैदान के बीचों-बीच खड़ा वह वट वृक्ष उसकी प्रेरणा बन जाता है। वह पौधा मन ही मन सोचता है कि मैं भी एक दिन बड़ा होकर इस धरती पर रहने वाले लोगों को छाँव दूंगा, बच्चों के खेलने और झूला झूलने का डेरा बनूंगा इत्यादि। इस पौधे के जीवन में आगे क्या कुछ होता है और तथाकथित विकास का उसके जीवन पर क्या असर पड़ता है, इस लेख के माध्यम से आपके समक्ष प्रस्तुत है:
कुछ बच्चे अपनी कक्षा में पढ़ाए जा रहे पाठ से प्रेरित होकर अपने घर के पास वाले मैदान के एक किनारे एक पौधा लगाते हैं। जैसे-जैसे पौधा बड़ा हो रहा होता है वह अपने जीवन के उद्देश्य को समझने की कोशिश करता है।
वह पौधा देखता है कि मैदान से सटी कॉलोंनी के बच्चे उस बरगद के पेड़ के नीचे, जो मैदान के ठीक बीचों-बीच पीढ़ियों से अडिग खड़ा है, खेल रहे हैं, कुछ बुज़ुर्ग उस वट वृक्ष के चबूतरे पर बैठ शीतल वायु का आनंद ले रहे हैं और विवाहित महिलाएं उस वृक्ष की उपासना कर अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए पूजा कर रही हैं।
प्रत्येक दोपहर कोई न कोई उस वट वृक्ष की छाया में अपनी थकान मिटाता प्राय: दिख ही जाता है। डाकिया, सब्जी बेचने वाला, फल-फूल बेचने वाला आदि कोई भी व्यक्ति हो वह वट वृक्ष हर किसी की सेवा करने को सदैव तत्पर रहता है।
इन सब प्रेरणा रूपी दृश्यों से सीख लेते हुए वह नन्हा पौधा बड़ा हो रहा होता है और मन में सोचता है कि एक दिन वह भी इस संसार की नि:स्वार्थ भाव से सेवा करेगा।
दूसरी ओर हर छोटे-बड़े शहर, हर देश में विकास की लहर दौड़ रही है। आमजन, नेता आदि सभी चाहते हैं कि उनके गाँव, शहर, देश का विकास हो। सड़के चौड़ी हो, बड़े बड़े उद्योग उनके गाँव-शहर में आएं, विद्यालय, अस्पताल आदि सभी संसाधनो की सुविधा हो।
इन्हीं सब के चलते पेड़ों की कटाई आरम्भ होने लगती है क्योंकि वह कहीं सड़क चौड़ी करने में बाधा पँहुचा रहे हैं, कही पुल बनने के रास्ते में खड़े है, कोई नये अस्पताल, विद्यालय अथवा मॉल इत्यादि को आवंटित की गई जमीन पर खड़े हैं, तो उन बाधा रुपी वृक्षों का कटना तो निश्चित ही है। वे रास्ते से हटेंगे नहीं तो विकास कैसे होगा। और वैसे भी वृक्ष ही तो हैं उनको विस्थापित करने में समय और धन बरबाद करने से अच्छा है कि उन्हें काट कर उनकी लकड़ी बेचकर कुछ पैसा ही कमा लिया जाए, ज़्यादातर की यही सोच रहती है।
जैसे-जैसे समय बीतता है उस मैदान की भी, इस तथाकथित विकास की भेंट चढ़ने की बारी आ ही जाती है। कर्मचारी आते हैं और मैदान के किनारे बच्चों द्वारा लगाये गए उस नन्हें पौधे के देखते ही देखते उसके आस-पास के ज्यादातर वृक्षों को अपनी आरा मशीन से विकास की बलि चढ़ा देते हैं। निराशा में खड़ा वह पौधा आहत है और सोच में है कि उस वट वृक्ष का क्या होगा जो उसकी प्रेरणा है।
वह पौधा सोच में पड़ा मन ही मन विचार करता है कि इंसान यह क्यों नहीं समझ रहा कि हम वृक्ष ही उसके जीवन का आधार हैं। आज किसी व्यक्ति के पास नया पौधा लगाने का समय नहीं हैं। सभी पेड़ो को काटने की होड़ में लगे हुए हैं। कोई पर्यावरण के बारे में क्यों नहीं सोच रहा।
कुछ ही समय में वह दिन भी आ जाता है जब उस ज़मीन, जहाँ पर वह विशाल वट वृक्ष था, का आवंटन एक बहु-मंज़िला इमारत बनाने के लिए हो जाता है। विकास तो पर्यावरण की कमर तोड़ ही रहा था, बढ़ती हुई आबादी भी उसका साथ कंधे से कंधा मिला कर दे रही थी। शहरों की ओर होते पलायन से बढ़ती आबादी को अपने में समाहित करने के लिये शहरी सीमा का विस्तार करना मजबूरी थी। अंधे इंसान की दृष्टी से यह तो विकास का ही एक रूप है।
अंतत: वह दिन आ जाता है जब प्रेरणा स्त्रोत उस वट वृक्ष को भी काट दिया जाता है और सदियों से खड़े उस वट वृक्ष की जड़ों को नष्ट कर, अब वहाँ नई इमारत की नींव रखी जा रही थी।
विकास के नाम पर उन सभी बच्चों, बुज़ुर्गों, दोपहर की तपती धूप से बचने के लिए उन फेरी वालों का बसेरा अब नही रहा। उसकी जगह एक विकास रूपी इमारत लेगी जहाँ बड़ी-बड़ी कम्पनीयों के कार्यालय होंगे, अधिकारियों और कामग़ारो के लिये इमारत में Centralized AC होगा जहाँ बैठकर भविष्य मे होने वाले विकास की रूपरेखा तैयार की जाएगी। ऐसे स्थान पर भला वह वट वृक्ष कैसे हो सकता था उसका योगदान ही क्या था विकास में।
इधर वह पौधा सोचता है कि यदि वह आज कटने से बच भी गया तो बड़ा होने के पश्चात् तो यह स्वार्थी इंसान चंद रुपयों के लिए पहले उसकी शाखाएं बेचेगा और अंतत: इसी विकास के नाम पर उसका भी अंत कर देगा। बिना यह सोच विचार के कि आज अगर पृथ्वी पर जीवन है तो हम वृक्ष उसकी आधारशिला हैं, अपने स्वार्थ और अपनी मंदबुद्धी के चलते धीरे-धीरे यह इंसान इस पृथ्वी पर जीवन का अंत कर देगा।
इसी विचार में दुःखी वह पौधा मुरझा कर धरती पर गिर अपना दम तोड़ देता है।
By Nikhil Tandon
Bahot Badiya bhai
very sad but true ending. Nice writing
Bht badiyaa
Great poetry!!
Great work.Love from America