By Shreya Paul
शहज़ादी तो मुझे सब पुकारते रहते हैं
मेरे फरमान पे बेग़रज़ सब रहते हैं।
किसने मुझे तावीज़-ए-पुरफ़ान कहा
ये मुझे ज़ीनत का सामान कहते हैं।
लोगो को मेरी जिंदगी मुमताज़ लगी
दीवार-ए-कांच आँखों पे पट्टी से रहते है।
मुझे अंजान सहेली का ख्याल क्यों आया?
मुझे शहज़ादी चुप रहने के लिए कहते हैं।
मेरी सहेली अपने मु’आशरे में मुफलिस हुई
उसकी ताबीरे मदद को तलाशते रहते हैं।
उसके हिस्से की रूई मेरे तकिए में समाए गए
रेशम की चादर या गिरहें मुझे जकड़े रहते हैं।
मैं बाहर शहज़ादी हूं लेकिन अंदर एक सवाल
मेरे ख्याल औरत होने का हक छींते रहते है।
आज अपनी कूवत से कांच तोड़ दो ‘समानाज़’
लोग तुम्हें जल्लाद शहज़ादी कहते रहते हैं।
(Samaanaaz is my pen name so I have mentioned it in the last couplet)
By Shreya Paul
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