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संवाद : कलम से (Samvad : Kalam Se)

By Mamta Srivastava


आज कुछ ऐसा लिख दे मेरी कलम

आज कुछ ऐसा लिख दे मेरी कलम

ना रोके तुझे सरहदें

ना ही बंधन मे बंधे हम

आज कुछ ऐसा लिख दे मेरी कलम


वीरों पर ना देश पर

जाति पर ना वेश पर

मज़दूर पर ना नेता पर

पद पर ना अभिनेता पर

भुला अन्तर , सारे बन जाए एक सम

आज कुछ ऐसा लिख दे मेरी कलम


परायों पर ना अपनों पर

जागृति पर न सपनों पर

पशु पर ना मनुष्य गात पर

रहस्य पर ना खुली बात पर



मिट जाए जिससे सारे वहम

आज कुछ ऐसा लिख दे मेरी कलम


रिश्तों पर ना अलगाव पर

शहरों पर ना गाँव पर

अभिलाषा पर ना झूठी वाह पर

मंजिल पर ना राह पर


दूरियाँ हो जाए सारी, जिससे कम

आज कुछ ऐसा लिख दी मेरी कलम

शीतलता पर ना ताप पर

पुण्य पर ना पाप पर

लघु पर ना महान पर

लेकिन बस इक पहचान पर


मानवता जाए जिसमें रम

हाँ ऐसा ही लिख दे कलम

आज कुछ ऐसा लिख दे मेरी कलम


By Mamta Srivastava




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