By Khushi Chaudhary
जब बहती हवा मेरी जुल्फों को सहलाकर गई
तो खूबसूरती का एहसास हुआ,
उस ढलते सूरज की शाम में
मुझे महसूस कुछ खास हुआ।
इस दुनिया के इतने रंग हैं कि गिने नहीं जा सकते
पर जज्बातों के हिसाब से चुने ज़रूर जा सकते हैं,
कुछ कहा मैंने,
कि इस दुनिया के इतने रंग हैं कि गिने नहीं जा सकते
पर जज्बातों के हिसाब से चुने ज़रूर जा सकते हैं,
जब नाचने का मन करे तो पीला चिल्लाता है,
उस बेचैनी भरी रात में फिर नीला कुछ और रूलाता है,
जब आपा खो बैठूं अपना तब लाल उभर कर आता है,
कुदरत का क्या खूब करिश्मा इस बात का एहसास हरा ही तो करता है।
सबकी अपनी खासीयत है पर एक कुछ खास नहीं,
काला तक सुंदर लगता है पर सफेद में वो बात नहीं।
उस शाम बात की मैंने उससे
पूछे सब सवाल,
अनकहे से किस्से सुना
उसने जताया अपना हाल।
बोला वो मुझसे - "सुनाने को तो मैं भी अपनी कहानी सुना दूं,
मिटाकर खुदको पल भर में बेरंगियत ला दूं,
पर मैं इतना बुरा नहीं।"
"मेरे कतरे कतरे की अहमियत,
दुनिया का हर कोना दिखाता है,
और जब नज़रों को तलाश बेदागी की हो
तब सफेद ही याद आता है।
मालूम है तुम्हे,
जब दुनिया के सब रंग छोड़ दे
तब मुझे ही बुलाया जाता है
और
जिंदगी खत्म होने पर रूह को चैन की तलाश हो
तब उसे सफेदी में ही जुलसाया जाता है।"
"सुकून की जब राह भटक चुकी हो
तब वो मेरे साय में ही तो होती है,
तबाही की रंगत को मिटाना हो जब
तब दुनिया मुझे ही निचोड़कर तो सोती है।
सफेद कागज पर ही तो रंगो को उडेला जाता है
काले कागज का साथी भी सफेद ही कहलाता है।
जब रात पर अंधेरे की चादर चढ़ी हो
वो सफेद झलकता सितारा ही जगमगाता है।
ना जाने फिर क्यों मुझे कुछ कम खास समझा जाता है।"
"मेरी कदर छिपी है कहीं जो दिखाने का मन नहीं।
अपनी खूबसूरत सी सीरत जताने का मन नहीं।
अपना लिबास हटा हसरतें बताने का मन नहीं।
सफेद ने बहुत सहा है अब और छिपाने का मन नहीं।"
वो आम ही सही,
बेरंग ही सही,
अपनी अहमियत छिपाने का हुनर उसमे ही समाता है ,
वो सफेद रंग ही तो है
जो सबसे कीमती होकर भी
कुछ कम खास कहता है।।
By Khushi Chaudhary
Beautiful poem!