By Ramyaa Shukla
किसिके इतने पास हो, कि सबसे दूर होगए, जिसके साथ सालों तक की दोस्ती निभाए, आज उसी को भूल गए।
जिससे कभी घंटो बातें किया करते थे आज वही बातें किसी और को सुनाते दिखे। कोई शिक़ायत तो समझ नहीं पाए, ग़म अब है नहीं तुमसे ना कोई नाराज़गी है। ग़म तो इस बात का है कि शायद तुम इस दोस्ती की कीमत इस बात का है कि तुम्हें कोई ग़म नहीं है , ना हमसे बिछड़ने का या ना हमारी कमी का।
खुश तो बहुत हू तुम्हें खुश देख कर, बस तुम कभी दुखी नहीं हुए मुझे दुखी देखकर। सौ पन्ने भर दू बस अगर तुम पढ़लो, हजार बातें और बतादू बस तुम एकबार और सुनलो। पर तुम्हारे पास अब वो वक्त कहा जो पहले हुआ करता था।
नये लोग, नये किताबे और नये सपनों के उजाले में तुम और मैं...?
मैं वही पुरानी बातें, पुराने वक्त के इंतजार के अंधेरे में घिरी हूँ, तुम्हारे आने की रोशनी के इंतजार में।
By Ramyaa Shukla
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