By Kabir Anand
मैं नहीं बताऊंगा तो समझ पाओगी क्या ?
मेरे मन के अल्फाज़ बिन बताये पढ़ पाओगी क्या ?
मेरे ज़ख्मों को भरना ना सही,
पर तुम उनपर मरहम लगा पाओगी क्या ?
मेरे ना होने पर तुम मेरी यादों में दो आंसू बहा पाओगी क्या ?
तुम एकांत में मुझे याद कर पाओगी क्या ?
मेरे व्यक्तित्व को पहचान,
तुम उसे अपना पाओगी क्या ?
मैं नहीं बता पाऊंगा तो जान पाओगी क्या ?
मैं नहीं बताऊंगा तो समझ पाओगी क्या?
मैं रोज़ दुआएं करूँगा,
तेरे खुश रहने की ये गुहार मैं अवश्य करूँगा।
तेरे हसने की,
तेरे खु़श रहने की,
तेरे सवस्थ रहने की,
बिन किसी ख़िताब के मैं हर पल यही कामना करूँगा।
मैं हर पल यही दुआ करूँगा।
तुम मेरी हो और मैं तुम्हारी ही आराधना करूँगा।
तुम मेरी हो, इस पर विश्वास कर,
मैं तुम्हारी ही कद्र करूँगा।
मैं तुम्हारी ही कद्र करूँगा।
रख महफ़ूज़ तुम्हें अपने दिल में,
मैं हर पल तुम्हारी ही कल्पना करुंगा,
तुम्हें अपना बना पऊ,
ऐसी गुज़ारिश में ईश्वर से हर पल करूंगा,
ऐसी दरख्वास्त में ईश्वर से हर पल करूंगा |
पर क्या तुम वो सब कर पाओगी,
जो मैं हँसते - हँसते कर जाऊंगा ?
थाम हाथ मेरा,
क्या तुम वोह गलियाँ चल पाओगी,
जहाँ रास्ते थोड़े कच्चे होंगे,
कमरे थोड़े छोटे होंगे,
और कपड़े थोड़े मैले होंगे।
पर मेरा ये इश्क़,
मेरी ये मोहब्बत, सब
समुद्र सा गेहरा होगा,
आसमाँ सा आनंत होगा,
जहाँ मैं सिर्फ तुम्हारा और तुम सिर्फ मेरी होगी,
मेरी आरज़ू में भी तुम्हारी ही रौशनी होगी ।
पर तुम बताओ क्या इसमें तुम्हारी कभी भी मंज़ूरी होगी ?
मैं जी लूँगा सात जन्म तुम्हारे साथ,
में जीना चाहता हूँ सात जन्म तुम्हारे साथ।
हर पल को दोहराएंगे,
हर पल में रंग जाएंगे,
गिरे तो एक दूसरे का सहारा ही बन जाएंगे,
थाम हाथ हम हर विघ्न को पार कर जाएंगे |
पर तुम बताओ,
क्या ये जन्मो - जन्मो के वादे तुमसे किए जाएंगे?
इन्हें निभाने के लिए क्या हमारे दिल कभी जुड़ पाएंगे?
मैं तुम्हारी यादों में भी रह लूँगा, तुम मेरी फिक्र ना करना।
जी लूँगा हमारी यादों के गुलदस्ते में,
तुम मुझे छोड़ने का ज़रा भी अफसोस ना करना,
तुम ज़रा भी अफसोस ना करना |
धीरे-धीरे ही सही,
पर समझा लूँगा खुद को,
कि,
रास्ते हमारे अलग थे,
हम इश्क ढूंढ रहे थे,
वे कुछ और खोज रहीं थीं,
हम मिले ज़रूर थे,
हम मिले ज़रूर थे,
लेकिन इसमें खुदा की सहमति कहाँ थी ?
शायद इसमें खुदा की सहमति ना थी |
मैं नहीं बताऊंगा तो समझ पाओगी क्या ?
मैं नहीं बता पाऊंगा तो जान पाओगी क्या ?
मैं नहीं बताऊंगा तो समझ पाओगी क्या?
By Kabir Anand
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