सरहद पर धुआँ-धुआँ-सा ....
- hashtagkalakar
- Jan 11
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Updated: Jan 18
By Nandlal Kumar
यूँ हाथ दबाकर गुजर जाना आपका मज़ाक तो नहीं,
आज तो रूमानियत है कल मेरा दर्दनाक तो नहीं।
ये सरहद पर धुआँ-धुआँ-सा क्यों है,
ज़रा देखना कहीं फिर गुस्ताख़ पाक तो नहीं।
क्यों माथे से लगा लूं ताबीज़-ए-वाइज़ को,
धातु ही तो है तेरे कूचे की खाक तो नहीं।
बड़े मुल्क हर जंग में पीठ थपथपाते हैं,
कहीं यह असलहा बेचने का फ़िराक़ तो नहीं।
पास बुलाने से पहले ग़ुलों को सोचना चाहिए,
बेताब है भँवरा नीयत उसकी नापाक तो नहीं।
By Nandlal Kumar
Sir, you should author a book. All your content is engaging and inspiring!
Laajawaab
✨💯
Well expressed
🇮🇳