सर्द सुकून
- hashtagkalakar
- Jan 11
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Updated: Jan 18
By Harsh Raj
मायूसियों का साथ अब छूट रहा है,
ग़म की जुर्रत भी अब कमने लगी।
जोश-ए-इंतेक़ाम अब ठंडा हो रहा है,
बेक़रारी जो अरसे से थी अब थमने लगी।
शायद ये इस मौसम का कमाल है,
या ये भी मेरा ही कोई नया ख़याल है।
जवाब तो हर शख्स से मिल रहे हैं,
लेकिन याद ही नहीं कि क्या सवाल है।
लगता है अब सुकून मिल जाएगा दिल को मेरे,
जिसकी तलाश में उम्र भर भटके हैं।
उम्मीद है ये भी वो भरम न हो मेरा,
वजह से जिसके हर मोड़ पे हम अटके हैं।
अब वाजिब नहीं लगता यूं खुशी में मुस्कुराना,
इजात तो इसका ग़म छुपाने को हुआ था।
याद ही नहीं वो पल जब हमारा भी दिल,
किसी को दिल की बातें बताने को हुआ था।
मयस्सर है हर तरफ़ अब सिर्फ़ रोशनी ही रोशनी,
जो खो चुकी थी न जाने कितने अरसों से कहीं।
आज ईद तो नहीं पर चाँद निकला है देखो,
जो छुपा हुआ था न जाने बरसों से कहीं।
क्या मैं किसी ख़्वाब में हूँ फिर से?
फिर ये मेरा कोई नया वहम तो नहीं?
अगर है तो बस गुज़ारिश है टूटे न ये,
ख़ुश हूँ यूँ जीने में, भले ये झूठ सही।
By Harsh Raj
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