By Usha Lal
कल करना है क्या क्या मुझको
मन में ख़ाका खींच लिया था !
क्या पहनूँगा ! क्या खाऊँगा !
यह भी मैंने सोच लिया था ।
किस से मिल कर क्या कहना है ,
यह भी मन में मचल रहा था!
कितनों से हिसाब करना है,
गणना कर मैं पुलक रहा था !
केवल ‘कल ‘की बात छोड़ दो,
थी तैयारी कई दशक की ,
संभवत: मैं सोच रहा था ,
मेरी पारी अजर -अमर थी!
था निश्चिन्त सोच कर मैं यह , हैं अनन्त मेरी गतिविधियाँ , बहुत समय है पास मेरे , और अक्षुण्ण है जीवन की बगिया! आगे की तैयारी कर के मैं तो था निश्चिन्त स्वयम् से लेकिन मुझको नहीं पता था “सांसें “ हैं छुट्टी पर कल से ।।
By Usha Lal
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