By Anil Chauhan
मैं अकेली थी माँ,वह समूह था पांच का
वह पत्थर थे माँ मैं टुकड़ा थी काँच का
वह दरिन्दे ऐसे टूट पडे, जैसे टूटता है शेर अपने शिकार प़र
माँ बहुत तड़पी मैं फिर खामोश हो गयी थक हार कर
हवस पूरी होने पर भी उन्होंने मुझे कहां छोड़ा
पहले बाजू फिर माँ उन्होंने मेरी टांग को तोड़ा
नंगे बदन के साथ रोती चिल्लाती रही मैं माँ सड़क पे लोग वीडियो बना रहे थे माँ और यहां मेरी जान निकल रही थी तड़प से
आखिरकार माँ तेरी बेटी जिदंगी हार गयी
इन दरिंदों की हैवानियत मुझे मार गयी
अपनी बेटी के बलात्कार की खबर सुनकर वह माँ कितना रोई होगी
हम तो अपने घरों में आराम से सोए थे वह माँ कैसे सोयी होगी
माँ कभी मोमबत्ती जलाकर तो कभी मौन रख कर याद कर लिया जाता है हम परिंदों को,
मैं तो चली गयी माँ ,पर दुख होता है कि जिंदा क्यू नहीं जला दिया जाता इन हवसी दरिंदों को,
आज हर बेटी को उड़ना चाहती थी आसमान में वह डर सहम कर अपने घर में सोयी है
यह सब लिखते लिखते मेरे साथ मेरी कलम भी रोई है
अब हर बेटी भगवान से य़ह दुआ करती है की अगले जन्म में बेटी ना बनाना
किसी की मां , किसी की बेटी , किसी की बहन को खा गया ये जालिम ज़माना
By Anil Chauhan
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