By Shalini Sharma
स्नेह
कोई उपन्यास नहीं
पढ़ा और फेंक दिया
स्नेह
कोई रस नहीं
जिसका तुमने आनंद लिया
और छोड दिया
स्नेह
कोई संविधान नहीं
जो जब चाहा संशोधित किया
स्नेह
विकृत मोह नहीं
जो भंग हो गया नहीं
स्नेह, मानव का शाश्वत भाव है
हर व्यक्ति के जीवन का पड़ाव है
इसे बांटिए समेटिए मत
यह सागर है भावनाओं का
इसमें तैरिए डूबिए मत
By Shalini Sharma
Comments