By Abhimanyu Bakshi
आसमान को दिखाया है मैंने उसका रक़ीब कोई,
बदलता है मौसम जैसे यहाँ पर हबीब कोई।
उसे नई ख़ुश्बूओं से मिले फ़ुरसत, मैं जाके उसे तब बताऊँ,
हो गया है उसके शहर का गुल-फ़रोश ग़रीब कोई।
नसीब आया सवाब से था वो भी किसी ज़माने में,
अब कर गया ता-उम्र के लिए मुझे बदनसीब कोई।
जो पास बैठकर भी मुझसे कोसों दूर ही होता है,
उसे कैसे कहूँ कि उसके सिवा मेरे नहीं क़रीब कोई।
मोहब्बत भरा इंसान क्यों महरूम है मोहब्बत से!
दानिश-मंद भी जानते नहीं ये मसला है अजीब कोई।
आँखें फेर ली आज उसने कभी पलकों पर रखता था,
मुझे भी सीखा जाता ऐसे बदलने की तरकीब कोई।
By Abhimanyu Bakshi
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