By Swapnil Vishwakarma
जुदा हुए भी तो इस कद़र हुए,
कि जुदा होके भी हम जुदा ना हुए।
अजी मेरी तो हर सांस में उसका नाम है,
कैसे भूलूँ उस प्यार को,
जो मेरे मोहल्ले की हर गली में बदनाम है।
ये आँखें नहीं थीं था आईना उसका,
जिसमें वो रोज़ खुद को देखा करती थी;
बस्ती थी एक तस्वीर इसमें
जिसमें मेरी दुनिया सजा करती थी।
अब तो ये नयन उसके एक दीदार को तरस गए,
जुदा होके भी हम जुदा ना हुए ।
हाँ मुझे आज याद है…
मेरा उसकी गोद में सिर रख कर सोना
और उसका मेरे कंधे पर सिर रख कर रोना;
मेरी उंगलियों का उसके बालों में खोना
और हम दोनों का एक दूसरे की बाहों में होना।
थाम लेती थी हाथ मेरा हर मोड़ पर चलते हुए,
जुदा होके भी हम जुदा ना हुए।
काश कुछ गलतियाँ न मैंने की होती
काश कुछ गलतियों को उसने माफ़ कर दिया होता
तो हमारे दरम्यान जुदाई का ये सिलसिला नहीं होता ।
अब आलम तो यूं हैं…
जब भी इश्क़ दरवाजे पर दस्तक लाती है
तो अंदर से एक आवाज़ आती है;
और कुछ किए पुराने वादे खुरेद जाती हैं ।
कुछ यूँ उसके एहसास मुझमें बाकी रह गए,
जुदा होके भी हम जुदा ना हुए।
जुदा हुए भी तो इस कद़र हुए,
कि जुदा होके भी हम जुदा ना हुए।
By Swapnil Vishwakarma
Wow 😍
very nice and beautifully written
I really liked your poem 😍🥰❤
Kya baat hai 😍
So relatable bhai, heart touching words 😍❤