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हादसों के बिना ज़िन्दगी अधूरी होती है

By Sandeep Sharma






हादसों के बिना ज़िन्दगी अधूरी होती है दिल की हर ख़्वाहिश भी कहाँ

पूरी होती है

कब तक और कैसे मनाऊँ तुझको ऐ ज़िन्दगी तू जो हर दिन मुझसे

ख़फ़ा होती है

अधूरे हैं रास्ते और गुमनाम है मंज़िल बिना तेरे ऐ हम-सफ़र ये राह कैसे

पूरी होती है

देखते सोचते हुए तुझको एक उम्र कट गयी कोई हमसे पूछे ख़ुदकुशी

कैसे होती है

उसकी बे-रुख़ी मुझको हर दिन घायल करती है मैं देखता हूँ ये जंग कहाँ

ख़त्म होती है

एक ग़लत-फ़हमी ने हमको जुदा कर दिया मैंने कभी ना सोचा था दोस्ती में

दूरी होती है

ये फ़क़त जिस्म ही नहीं एक रूह भी है मगर रूह को चाहने से हवस कहाँ

पूरी होती है

अपना सब कुछ बेचकर वो दहेज़ जमा करता है ऐसे थोड़ी बाप से बेटी

रुख़्सत होती है


मैं भी बैठ जाता हूँ अक्सर काम को लेकर मुझे जब भी तेरे ख़्याल से

फ़ुर्सत होती है

मेरा दर्द ख़ुद-बख़ुद अल्फ़ाज़ बन जाता है मुझे जिस दिन तुमसे चोट गहरी

होती है


By Sandeep Sharma




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FR Kuldeep Singh
FR Kuldeep Singh
Nov 27, 2022

Gachh h

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