By Paramjit Kaur Gill
यहां ज़िन्दगी में अपना जब एक ही फेरा है,
तो क्यों हमने नफरत, धोखे और लालच के जाल में खुद को घेरा है,
जताने को इंसान जताये कि ये भी मेरा और वो भी मेरा है,
गर इंसान ये समझ जाये कि असल में तेरे अंदर चल रहा ये स्वास भी कहा तेरा है,
तू तो नामुमकिन को भी मुमकिन कर जाए, ऐसा तेरे अंदर विशाल शक्तियों का पसारा है,
ज़िन्दगी जितना तुझ को आज़माती है, उतना ही खुद के ये और खरीब ले आती है,
फिर हो जाता है खुद की काबिलियत पर भरोसा इतना,
कि दूर हो जाए जो तेरे जीवन में फैला अंधेरा है,
वजह अगर ढूंढ ले हम ज़िन्दगी में मुस्कुराने की,
फिर हर एक पल यहां सुनहरा है,
कोशिश अगर करें कि शिकायतें कम रख रब्ब का शुक्राना कर पाए हम,
तो ज़िन्दगी कि हर लम्हें को हंस कर गले लगा पाए, ऐसा हमारे अंदर रोशन सा बसेरा है,
हर बीत रहे पल में ज़िन्दगी जीना हमें सिखाती है,
बनाती है अपनों संग मीठी यादें और दुआ में प्यार और मोहोब्बत भी दे जाती है,
कुछ ऐसे सबक भी दे जाती है ये ज़िन्दगी,
जो दिल की मासूमियत को समझदारी कि मोड़ दिखा जाती है,
जो बेफिक्र हँसने की वजह को बस दिखावे की मुस्कुराहट लौटा जाते है,
जो दिल की ख्वाइशों को बिना जाहिर किये ही रोज की ज़िम्मेवारियों कि बोझ दिला जाती है,
तो कही खुद को ही खुद का सच्चा दोस्त बनाकर बाकी सबसे दूरी बनाये रखना, अक्सर ये ज़िन्दगी ही समझा जाती है,
काश! कभी तो हम फुर्सत से ये सोच पाए,
कि ज़िन्दगी में हम खुद अपने लिए कितना मायने रखते है?
जवाब अगर मिल जाए तो फिर हम यह जान पाए,
कि आपकी जिंदगी कि चंद पल खुद आपके लिए इतना क्यों जरूरी है,
गम अगर कभी दे भी जाए ये ज़िन्दगी, तो कैसे हम मुस्कुराने की वजह ढूंढ पाते है,
चुनौतीयाँ अगर कभी दे भी जाए ये ज़िन्दगी,तो कैसे हम उनका सामना करने का हुनर सीख पाते है,
धोखे और नाराज़गी अगर कभी दे भी जाये ये ज़िन्दगी, तो कैसे हम बदले की भावना को त्यागकर बिना किसी का दिल दुखाए, बस अपने अच्छे कर्म किये जाते है,
कुछ पाने की चाहत अगर कभी दे भी जाए ये ज़िन्दगी, तो कैसे हम उसे हासिल करने में उसका रुतबा ऊंचा रख पाते है,
क्योंकि,
गुलशन में खिली बहार सा अनोखा सफर है ये ज़िन्दगी,
बंजर ज़मीन पर हरयाली जैसा अनोखा सफर है ये ज़िन्दगी,
दुख-दर्द में भी हँसी के फुहारे जैसा अनोखा नज़ारा है ये ज़िन्दगी,
मुसीबत में भी हौंसलों की उमंग जैसा अनोखा उझाला है ये ज़िन्दगी,
निराशा में भी आस की तरंग जैसा अनोखा सहारा है ये ज़िन्दगी |
By Paramjit Kaur Gill
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