शाम बिते हुए दिन की गवाह है,
या आनेवाली दिन की नांदी।
शाम जो नही बदल सके उसका गम है,
या स्थिर परिवर्तन की आदी।
क्या शाम हिसाब है दिन का,
या अरदली रात में आनेवाले हसीन ख्वाब का।
क्या शाम पछतावा है,
या तुष्ट रूप आफ़ताब का।
शाम मेरी, शाम तेरी,
शाम इसकी और उसकी भी।
वो दृढ़ है, सत्य है और तथ्य भी,
वो परछाई है, और व्यक्तित्व का नजरिया भी।
:- मोहित केळकर©️